Rawat-Uwach

महामारी  काल के हालात

इन हवाओं मैं हरारत, क्यों  है

जिस्म की साँस से बग़ावत, क्यों  है

एक हाशिये पे ला के हमें छोड़ दिया,

इन लम्हों की शरारत क्यों है,

सुबह उठ के घूम आते थे

अब बागों से अदावत क्यों है

जिंदगी तो यूँ भी गुजर ही जाती,

इस मेहरबान की जरुरत,  क्यों है

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रात, रास्ते और चौराहा

कल रात मैं एक रात से मिला

चौराहे पर खड़ी, बतिया रही  थी, चौराहे से,

रात अकेली नहीं थी, कुछ रास्ते भी साथ थे

रात उदास थी, चौराहा  खामोश और रास्ते भयभीत,

मुझसे रहा न गया, पूछ ही बैठा,

ये तुमने क्या हाल बना रखा है रात ?

मैंने तो तुम्हे देखा है हमेशा हसीं और रंगीन,

पर तुम क्यों दिखती हो इतनी संगीन  ?

चौराहो की किलकारी और चुलबुलाहट

क्यों लग रही है मात्र एक सुगबुगाहट

जो रास्ते अविरल दौड़ते थे मंजिलों की ओर

क्यों दीखते असहाय, तकते मेरी ओर

रात जैसे  कराह उठी, बोली,

अब नहीं आते मेरी ओर सृजनकर्ता और  कलाकार

मेरी देह पर होते है जघन्य अपराध और बलात्कार

मेरी कोख से अब नहीं झरते गजले और गीत

न ही चौराहो और  रास्तो मैं मिलते, मनमीत

सुन उसकी बात, उस रात, मैं हैरान हो गया,

चुप रह गया, शब्दहीन, परेशान हो गया

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पुत्र

तू क्या आया की अरमान मेरे लौट आये

जीवन के सब सोपान मेरे लौट आये

तेरी आँखों मै देखे फिर से सपने मैंने

दिन वो बचपन के मेरे लौट आये

थक रही आँखों मै फिर शबाब आया

अनबुझे प्रश्नों का फिर जवाब आया

बोझिल हुई आँखों ने फिर करवट बदली

जश्ने जिंदगी  का मजा फिर बेहिसाब आया

मेरे देखे हुए ख़्वाबों की ताबीर है तू

इस जहन मै बनती हुई तस्वीर है तू

इक झोंका है, इक मौका है, आसमां है

जीवन की कमाई है, मेरी जागीर है तू

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पुत्री

उसने आ कर ये एहसान किया

मेरे जीवन तो इक आयाम दिया

मधुर,  मासूम  खिलखिलाहट ने 

मुझे समपूर्ण किया, सम्मान दिया

अव्यवस्थाओ मै लगाया , पूर्ण विराम 

भविस्यमुखी बनाने पर , कोटि कोटि प्रणाम 

उसकी मधुर किलकारी और आवाज

किसी भी साज से है ज्यादा लाजवाब

मेघा है वो, वर्षा है वो, सावन है वो

मेरी बेटी है, मेरे लिए पावन है वो

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सहचरी 

पुष्प  तो पहले भी खिले थे, 

पहले भी बयार  आयी थी

पर  सत्य  इतना ही है

वो आई तो बहार आई थी 

सावन  आया, बसंत आया

कल्पनायें  अनंत लाया

भावनाओं  को पंख लगे,

नींद उडी, स्वप्न जगे  

माह  छड़भंगुर हुए, 

वर्ष भी काफूर हुए

श्याम हर हसीं हुई

खुशियाँ सब दस्तूर हुई 

संगिनी है,  सहचरी है वो 

पत्नी है या,  परी  है वो

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पिता

मेरे प्रथम गुरु थे, मेरा आकाश थे,

सही कहूं , मेरी दृष्टि, मेरा  प्रकाश थे

मेरा पहला कदम उन्होंने चलाया,

मेरा पहला सपना उन्होंने दिखाया

मेरी सुरक्छा के अभेद्य कवच थे,

मेरी अगणित कहानियो के सच थे

वो मेरे लिए ब्रह्मा, विष्णु महेश थे

मेरे संतापों के दुश्मन विशेष थे

वो मेरे रचयिता थे, मेरा भगवान थे

वो में पिता थे मेरा आसमान थे

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माँ

वो मेरी धरती थी, मेरे लिए कुछ भी करती थी

उसी ने बीजे थे मेरे सारे संस्कार,

उसी ने सींचे थे  मेरे सपने, संसार

मेरी हर ख़ुशी को उस ने जिया था

हर ग़म नाखुशी को उसी ने पीया था

मेरे जिस्मोजां पर जब भी आघात हुआ

दुआ-ए-असर उसका, सब सौगात हुआ

मेरी किस्मत उसकी दुआओं बिन फ़क़ीर सी थी

वो  मेरी माँ थी, मेरी तक़दीर सी थी.

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मैं हूँ  पहाड़ी

मैं हूँ पहाड़ी, मैं हूँ पहाड़ी

देश की सेवा में, सबसे अगाड़ी

पहाड़ों से निकला, शहरों मैं आया

मेहनत की, सब बच्चों को पढ़ाया

डोभाल बनाया, जनरल बनाया 

पुरे देश में,   मैं ही हूँ छाया,

पलायन किया, पर नाम कमाया

दो राज्यों मैं मुख्यमंत्री बनाया

महामहिम का दर्जा भी पाया

ईमानदारी बना मेरा साया 

बिष्ट भी हूँ मैं, मैं  हूँ कोश्यारी

में हूँ पहाड़ी,  मैं हूँ पहाड़ी

उत्तराखंड को स्वर्ग बनाऊंगा मैं

रिवर्स पलायन से सबको बुलाऊंगा मैं

बांजी कुड़ियो को फिर से बसाऊंगा मैं

वर्ल्ड का टूरिस्ट सेण्टर बनाऊंगा मैं

मेडिकल टूरिज्म को यहां बढ़ाऊंगा मैं

रिलीजियस टूरिज्म को यहां ले के आऊंगा  मैं

एजुकेशनल हब भी यहां बनाऊंगा मैं

आर्गेनिक खेती से सबको रिझाऊंगा मैं

पोखरियाल हूँ मैं, मैं हूँ तिवारी

मैं हूँ पहाड़ी, मैं हूँ पहाड़ी

मेरे पास गंगा है, मेरे पास हिमालय है

बदरीनाथ है, केदार शिवालय है

जमुनोत्री है, बैजनाथ है,

ग्वेल देवता का भी साथ है

पाताल भैरव है,  कैंची धाम है

हरिद्वार है , बिनसर धाम है

नंदादेवी का आशीर्वाद है

सबसे प्यार ना कोई विवाद है

गैरोला हूँ मैं , मैं हूँ जौनसारी

मैं हूँ पहाड़ी, मैं हूँ पहाड़ी

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महामारी  काल

घर मैं जीवन है बाहर कोरोना है

मजबूरी ही सही, आपने सही चुना है

सुस्त आँखों मैं फिर से शबाब आया है

मुद्दतों के बाद आपका साथ पाया है

जिंदगी की ज़द्दो जहद, सूख गए रिश्तो में

सावन की पहली बौछार का अहसास आया है

रेगिस्तान मैं छायी घटा, आपने सही सुना है

मजबूरी ही सही आपने सही चुना है

रोक लो इन लम्हों को वर्ना ये भाग जायेंगे,

तस्वीर मैं जड़ लो ये फिर याद आएंगे,

जब श्याम हो  जाएगी, उम्र ढल जय्र्गी

सिर्फ यही एक दौलत है जो काम आएगी 

दिल बाग़ बाग़ है मन गुनगुना है

मजबूरी ही सही आपने सही चुना है

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